ये हैं चार कानूनी अधिकार जो हर महिला को पता होने चाहिए

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भारत में महिलाओं की आबादी करीब 48 फीसद है, जिसमें से करीब 27 फीसद महिलाएं नौकरी और बिजनेस में लगी हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2004-05 से 2011-12 के बीच विभिन्न कारणों से 1.97 करोड़ महिलाओं ने नौकरी छोड़ दी थी।

बावजूद इसके यह बाद दीगर है कि महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान दर्ज कराने की कोशिश कर रही हैं। फिर भी कई महिलाओं को वास्तव में कार्यस्थल पर मिलने वाले अपने अधिकारों के बारे में पता ही नहीं है। आप इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते हैं कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक बड़ी समस्या है।

इस संदर्भ में है कि महिलाओं को कार्यस्थल पर मिलने वाले अपने कानूनी अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए। यहां हम आपको ऐसे ही कुछ अधिकारों के बारे में बता रहे हैं।

समान वेतन का अधिकार- समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसका उल्लंघन करने वाले कंपनी के मालिक पर 10 हजार रुपए का जुर्माना और तीन महीने से लेकर दो साल तक की जेल की सजा हो सकती है। हालांकि, मॉन्सटर इंडिया की रिपोर्ट अलग ही पहलू उजागर करती है। उसके सर्वे में पाया गया कि जहां पुरुषों को 345.80 रुपए औसत वेतन मिलता है, वहीं महिलाओं को महज 259.8 रुपए औसत वेतन मिलता है।

यौन उत्पीड़न से बचाने का नियम- राष्ट्रीय बार एसोसिएशन के एक हालिया सर्वे में पता चला कि करीब 38 फीसद महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। हालांकि, यह चौंकाने वाली बात थी कि करीब 69 फीसद पीड़ितों ने और खराब स्थिति से बचने के लिए मैनेजमेंट में शिकायत ही नहीं दर्ज कराई थी। जबकि काम पर हुए यौन उत्पीड़न अधिनियम के अनुसार आपको यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है।

साल 2013 में संसद ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम पारित किया। इसके तहत जिस जगह 10 या अधिक कर्मचारी काम करते हैं, वहां हर नियोक्ता को महिलाओं की शिकायतों को दूर करने के लिए एक आंतरिक शिकायत समिति बनानी होती है। ऐसा नहीं करने पर नियोक्ता पर 50,000 रुपए जुर्माना, लगाया जा सकता है। वहीं, अपराध के दोहराए जाने पर उद्यम को रद्द कर दिया जा सकता है और व्यवसाय लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है। यह भी बताते चलें कि यौन उत्पीड़न को भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए के तहत आपराधिक अपराध के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है।

ट्रांसफर नहीं लेने पर नौकरी से नहीं निकाला जा सकता- जब आप नौकरी शुरू करते हैं, तो आप अपने नियोक्ता के साथ एक समझौता करते हैं। इंडियन कॉन्ट्रेक्ट एक्ट 1872 के द्वारा कर्मचारियों को सुरक्षा दी गई है। इस अनुबंध में ट्रांसफर का मामला भी शामिल होता है। यानी अगर आपने दूसरे स्थान पर एक नई पोस्टिंग लेने से इंकार कर दिया है, तो इस आधार पर आपको निकाला नहीं जा सकता है।

इंडियन कॉन्ट्रेक्ट एक्ट 1872 के तहत नई जगह दी जा रही पोस्टिंग की स्थिति आपके वर्तमान स्थिति से समतुल्य या बेहतर होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो कर्मचारी किसी भी जिला अदालत में स्थानांतरण आदेश को चुनौती दे सकता है। यदि कर्मचारी को लगता है कि तबादले से उनका वर्तमान वेतन पैकेज को प्रभावित होता है या उनसे छुटकारा पाने के लिए ट्रांसफर किया गया है, तो वह नियोक्ता से मौद्रिक मुआवजे की मांग कर सकता है।

मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार- मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि ये उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह(तीन महीने) तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं।

 

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